Uncategorizedक्राइमग्राम की समस्या

वन ग्राम दादर घुघरी में खेतों में लगी खड़ी फसल को कुकर्रा ग्राम के आरोपियों ने पशुओं से चरा कर नष्ट की

मध्यप्रदेश जिला डिण्डौरी, विकासखण्ड मेंहदवानी- के ग्राम वनग्राम दादर घुघरी के छः किसानों के खेत में लगी धान व अन्य फसलों को ग्राम कुकर्रा के ग्रामवासियों के द्वारा पशुओं से चरा कर नष्ट कर दिया गया। ग्रामवासियों ने 100 डॉयल कर शिकायत किया 100 डॉयल वाहन आने के बाद पुलिस कर्मचारियों ने पीड़ित आदिवासियों से कहा कि ग्रामवासी नहीं मान रहे है, आप लोग थाने में शिकायत करें, तब पीड़ित आदिवासी व्यक्तियों के द्वारा मेंहदवानी थाना जाकर लिखित शिकायत की गई। लिखित शिकायत में आरोपियों के नाम व पता श्रीमति सुखमतिया बाई पिता गोंविंद, झुन्नी लाल पिता रवनू, कार्तिक राम पिता रवनू, जगदीश बालचंद, देव सिंह पिता मायाराम सभी ग्राम कुकर्रा ग्रामपंचायत खरगवारा के निवासी है। पीड़ितों ने बताया कि शहपुरा न्यायालय में भी फसल चराई का मुकदमा चल रहा है, उसके बावजूद आरोपीगण के हौंसले बुलंद है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आरोपियों के पीछे कोई राजनैतिक व्यक्ति है, जिसके संरक्षण में इन पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो रही है।

                     22 अगस्त से लगातार 28 अगस्त 2024 तक लगातार कुकर्रा ग्राम के निवासियों ने वनग्राम दादर घुघरी के किसानों की फसलों को पशुओं से चराई करा कर नष्ट करा दिया गया। सबसे बड़ी बात यह है कि 2012 से लगातार पीड़ित किसान ठोस कार्यवाही की मांग कर रहे है लेकिन मात्र पुलिस द्वारा प्रतिबंधात्मक कार्यवाही कर इतिश्री कर ली जाती है। आज तक ना कोई पटवारी, बीटगार्ड, आर आई या तहसीलदार के द्वारा घटना स्थल की जांच व बरबाद फसल का पंचनामा मुआयना नही ंकिया गया जिससे इन पीड़ित किसानों को किसी प्रकार का कोई आर्थिक क्षति नहीं प्राप्त हुई। अगर शिकायत के बाद राजस्व या वन विभाग क्षति का आंकलन व पंचनामा बनाया गया होता तो न्यायालय के माध्यम से ये किसान मुआवजा के हकदार होते । जो भी लोक सेवक इस क्षेत्र में कार्यरत है शिकायत या पेपर में समाचार प्रकाशन के बाद भी इस घटना को सज्ञान में ना लेकर दो गांव की आपस में रंजिश बताते हुए पल्ला झाड़ लेते है।

जनजातीय कार्य विभाग की लापरवाही
जनजातीय कार्य विभाग वन अधिकार मान्यता कानून के क्रियान्यवयन के लिए प्रमुख विभाग है जो दावा प्रपत्र ग्रामसभा के द्वारा पारित कर उपखण्ड स्तरीय वन अधिकार समिति व जिला स्तरीय वन अधिकार समिति (जनजातीय कार्य विभाग) के पास जमा हो चुका है वे सभी किसनों को भू अधिकार दिया जाना है। लेकिन सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग के द्वारा कछुआ की गति से कार्य करने के कारण वन ग्राम दादर घुघरी में 14वर्षो में मात्र 42 भू अधिकार ही बांटे गए वर्तमान में लगभग 70 किसानों को भू अधिकार दिया जाना है लेकिन कब दिया जाना है इसकी तिथि निश्चित ना होने के कारण ग्रामवासी परेशान है,

              पीड़ित आदिवासी गरीबा पिता गोहरा, छुंदल पिता हरदा, शिवचरन पिता …, ,लखना पिता हीरा, सुखदेष पिता फूलसाय ने बताया कि वर्ष 2012 से लगातार हमारी फसल चराई की जा रही है, इस चराई में वन विभाग के कर्मचारियों का आरोपियों को संरक्षण प्राप्त रहता है, जिससे ये बेखौफ होकर चराई करवा कर फसल नष्ट कर रहे है लगातार शिकायत के बाद कोर्ट कचहरी में मामला चलने के बाद भी कठोर कार्यवाही इन आरोपियों पर नहीं होने से ये प्रतिवर्ष फसल नष्ट कर रहे है।

मामला क्या है :-
वनग्राम दादर घुघरी जैसा कि गांव का नाम है यह पूर्णतः वनग्राम है जो अंग्रेजों के समय से स्थापित है, आजादी के बाद इन गांवों को वनग्राम ही रखा गया इन्हें राजस्व ग्राम में तबदील नहीं की 2006 में जब वन अधिकार मान्यता कानून बना और 2008 में लागू हुआ तो वन ग्राम के सभी परिवारों को काबिज भूमि का पटटा दिया जाना था, लेकिन वनग्राम दादर घुघरी में सभी परिवारों को काबिज वन भूमि का अधिकार नहीं दिया गया, 50 प्रतिशत परिवारों को भू अधिकार मिला है लेकिन बाकी परिवार आज भी जिला कलेक्टर कार्यालय के चक्कर काट रहे है। कुकर्रा ग्राम के निवासियों का कहना है कि यह हमारे गांव की सीमा है यंहा पर हम खेती नहीं करने देंगें और कानून को अपने हाथ में लेकर स्वयं ही फसल चराकर फैसला कर रह रहे है जो गैर कानूनी है जबकि वास्तविक बात यह है कि पीड़ित परिवार 2005 के पहले से यंहा खेती करते आ रहे है, और उन्हें भू अधिकार दिया जाना चाहिए।
वनग्राम दादर घुघरी को नहीं मिला सामुदायिक वन संसाधन का अधिकार :-
वन अधिकार मान्यता कानून के तहत वनग्राम दादर घुघरी को सामुदायिक वन संसाधन का अधिकार दिया जाना था, जिसमें वनग्राम दादर घुघरी की संपूर्ण सीमा का सीमांकन किया जाता है साथ ही सीमा क्षेत्र में धार्मिक स्थल, सार्वजनिक स्थल, जल स्त्रोत एंव जंगल से जलाऊ लकड़ी, पत्ता, वनोपज, एंव नदी तालाब तथा नदियों से मछली पकड़ने का अधिकार भी शामिल है आदि अन्य सभी जो कानून में है वन अधिकार ग्रामसभा को दिया जाना है, लेकिन 17 वर्ष बीत जाने के बाद भी नहीं दिया गया जिससे सीमा विवाद के कारण भी यह समस्या बनी हुई है।

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