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सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक की अपील रद्द कर मंगलवार 12 अप्रैल की शाम 4:00 बजे तक इलेक्ट्रॉल बॉन्ड की जानकारी कोर्ट में जमा करने को कहा

दिल्ली खबर 750, सुप्रीम कोर्ट में आज इलेक्ट्रॉल बॉन्ड को लेकर सुनवाई हुई जिसमें पांच जजों की बेंच में मुख्य न्यायाधीश माननीय चंद्रचूड़ जी ने भारतीय स्टेट बैंक की ओर से देश के जाने माने एडवोकेट हरीश साल्वे को स्पष्ट रूप से कहा की 26 दिन से भारतीय स्टेट बैंक ने क्या किया कोर्ट को बताएं हम बैंक की ओर से दायर की गई याचिका जिसमें कहा गया है कि इलेक्ट्रोल बॉन्ड की समस्त जानकारी 4 जून 2024 तक कोर्ट को पेश करेंगे का समय मांगा है हम उस अपील को रद्द करते हैं और उन्होंने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कहा कि कल मंगलवार 12 मार्च की शाम तक इलेक्ट्रॉल बॉन्ड की समस्त जानकारी प्रस्तुत करें और 15 मार्च तक निर्वाचन आयोग को जानकारी देकर निर्वाचन आयोग की वेबसाइट में जारी करें।
इस आदेश से भारतीय स्टेट बैंक के साथ-साथ निर्वाचन आयोग भी पेसोपेश में पड़ गया है कारण की निर्वाचन आयोग के तीन आयुक्त होते हैं जिसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो मुख्य सहायक आयुक्त जिसमे एक चुनाव आयुक्त पिछले माह सेवानिवृत हो चुके हैं और दूसरे चुनाव आयुक्त ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है अब मात्र अकेले मुख्य चुनाव आयुक्त ही है और सामने लोकसभा चुनाव है चुनाव को देखते हुए दोनों सहायक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भी करना है और दूसरी और इलेक्ट्रोल बॉन्ड की जानकारी भी भारतीय स्टेट बैंक से कलेक्ट कर वेबसाइट में प्रशासन करना है।
इलेक्ट्रोल बॉन्ड की जानकारी जनता के सामने आने के बाद लोकसभा चुनाव में क्या प्रभाव पड़ेगा
देश में कुछ ही दिनों के बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और चुनाव के पहले किस पार्टी को कितना चंदा इलेक्ट्रोल बॉन्ड से प्राप्त हुआ किसने दिया कितने करोड़ दिया यह सब जानकारी पता चलेगी सूत्रों की माने तो सबसे ज्यादा चंदा भारतीय जनता पार्टी को प्राप्त हुआ है जानकारी प्रकाशन के बाद चंदा देने वालों के नाम भी उजागर होंगे जो आने वाले समय में इनकम टैक्स या अन्य कार्यवाही के शिकंजे में भी आ सकते हैं अब देखना यह है कि जानकारी प्रकाशन के बाद देश में होने वाले चुनाव में क्या फर्क पड़ेगा।
इस योजना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई हैं. पहली याचिका साल 2017 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और ग़ैर-लाभकारी संगठन कॉमन कॉज़ द्वारा संयुक्त रूप से दायर की गई थी और दूसरी याचिका साल 2018 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने दायर की थी.

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि इस योजना की वजह से भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा असीमित राजनीतिक दान और राजनीतिक दलों के गुमनाम फ़ंडिंग के फ्लडगेट्स या “बाढ़ के द्वार” खुल जाते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार को वैध बना दिया जाता है.

याचिकाओं में ये भी कहा गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की गुमनामी एक नागरिक के ‘जानने के अधिकार’ का उल्लंघन करती है, उस अधिकार का जिसे सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक पहलू माना है।
क्या है इलेक्ट्रॉल बॉन्ड
इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है. यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है.

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