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ओढारी बसनियां बांध के विरोध में जनसंवाद महापंचायत


मण्डला, घुघरी तहसील के ग्राम ओढारी में बांध के विरोध में जनसंवाद महापंचायत का आयोजन किया गया, महापंचायत का आयोजन बसनियां ओढारी बांध विरोधी संघर्ष समिति मण्डला डिण्डौरी के तात्वाधान में आयोजित किया गया था, महापंचायत में केन्द्रिय राज्य मंत्री भारत सरकार फग्गन सिंह कुलस्ते, विधायक निवास चैन सिंह वरकड़े, पूर्व विधायक डॉ.अशोक मर्सकोले, पूर्व विधायक मण्डला देव सिंह सैयाम, जिला पंचायत सदस्य सुश्री ललिता धुर्वे, जिला पंचायत उपाध्यक्ष कमलेश तेकाम, जनपद अध्यक्ष नारायणगंज आशाराम भारतिया, जनपद अध्यक्ष मेंहदवानी रामप्रसाद तेकाम, वरिष्ठ समाज सेवी हरी सिंह मरावी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी प्रदेश अध्यक्ष अमान सिंह पोर्ते, जिला पंचायत सदस्य भूपेन्द्र वरकड़े के साथ ही स्थानीय सरपंचगण, पंचगण, ग्रामसभा अध्यक्ष सम्मलित हुए।


गोंडवाना गणतंत्र पार्टी प्रदेश अध्यक्ष अमान सिंह पोर्ते ने परियोजना प्रस्ताव में सांसद विधायक पर आरोप लगाते हुए कहा कि हमारे जनप्रतिनिधियों ने विधानसभा और संसद में परियोजना निरस्तीकरण के लिए कोई बात नहीं कही जिसके कारण आज ये परियोजना का निर्माण भूमि पूजन शिलान्यास कर दिया गया, इस परियोजना से मण्डला डिण्डौरी के दस हजार महिला पुरूष विस्थापन की कगार में पंहुच गए है।उन्होने कहा कि कोई भी प्रोजेक्ट हो उसमें जब तक विधायक सांसद की सहमति नहीं होती तब तक प्रोजेक्ट आगे नहीं बढता है, प्रदेश शासन केन्द्र शासन में बैठे अधिकारी कर्मचारी ना ही पांचवी अनुसूची का पालन कर रहे है और ना ही ग्रामसभा के आदेशो को मान रहे है, ग्रामसभा की धज्जीयां उड़ाई जा रही है, जो कि संविधान का उल्लघंन है।
केन्द्रिय राज्य मंत्री भारत सरकार फग्गन सिंह कुलस्ते ने जनसंवाद महापंचायत में कहा कि डिण्डौरी जिले के तीन और मण्डला जिले के तीन गांव पूर्णतः विस्थापित होगें और 25 ग्राम आंशिक रूप से विस्थापन होगें, इस परियोजना से लगभग 2700 परिवार विस्थापित होगें, उन्होने कहा कि कुछ गांवों के नुकसान से सैकड़ो गांव सिंचित होगें, हम जो पुर्नवास पैकेज और मुआवजा की राशि है वह प्रभावितों को ज्यादा से ज्यादा दिलाने का प्रयास करेंगें। जनसंवाद महापंचायत में उपस्थित ग्रामीणों ने मंत्री से कहा कि मुआवजा की बात ना करें मात्र बांध निरस्त करने की बात करें, इस पर कुलस्ते जी ने कहा कि आप लोग मुख्य मुख्य लोगों की समिति बना लें बैठ कर चर्चा करेंगें, मैं राज्यपाल व राष्ट्रपति तथा मुख्यमंत्री से आप लोगों की मुलाकात करवा दूंगा, तब ग्रामीण जन शांत हुए।
वरिष्ठ समाज सेवी हरी सिंह मरावी ने कहा कि हमें संविधान में मिले हक और अधिकारों के बारे में जानकारी ना होने के कारण परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होने कहा कि 01 जनवरी 2008 से वन अधिकार मान्यता कानून पूरे देश में लागू हो गया लेकिन कानून के तहत ग्राम की पारंपरिक सीमा-वन संसाधन का अधिकार के लिए ग्रामसभाओं ने आज दिनांक तक कोई कार्यवाही प्रक्रिया नहीं की है, पेसा ग्रामसभा लागू हुआ लेकिन ग्रामसभाओं का सही तरीके से क्रियान्यवयन और ना ही सशक्तिकरण किया गया, जिसके कारण हमारे समाज को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। विस्थापन पलायन उन्ही परेशानियों का हिस्सा है, हमारे जनप्रतिनिधि पेसा और ग्रामसभा पर मात्र भाषण तक सीमित रखते है जमीन पर उन विषयों पर कोई कार्य नहीं कर रहे हैं यह चिंता विषय है।
विधायक चैनसिंह वरकड़े ने कहा कि मै अभी पहली बार विधायक बना हॅू, यह मेरे कार्यकाल में प्रस्तावित नहीं हुआ है, मै ग्रामीणों के साथ हॅू।
परियोजना प्रभावित किसान समिति के अध्यक्ष बजारी लाल सर्वटे ने महापंचायत में प्रस्ताव रखा कि बसनियां ओढारी बांध को निरस्त किया जावे, जिसे महापंचायत में उपस्थित जनसमुदाय ने हस्ताक्षर कर पारित किया, प्रस्ताव की कापी ज्ञापन के साथ संलग्न कर महामहिम राष्ट्रपति महोदय, महामहिम राज्यपाल महोदय, मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शासन के नाम पर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व तहसील घुघरी को दिया गया, एंव सांसद एंव विधायक को भी एक एक प्रति दी गई।

 

बसनिया बांध का लाभ-हानि आंकडा हतप्रभ करने वाला

                     मध्यप्रदेश के नर्मदा घाटी में 29 बांधों की श्रृंखला में बसनिया (ओदारी) बांध भी है। इस बांध से 8780 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई और 100 मेगावाट जल विधुत उत्पादन होगा। इस बांध से में आएगा। जिसमें 2443 6343 हेक्टेयर जमीन डूब शासकीय और 2107 हेक्टेयर वन में आने के भूमि डूब हेक्टेयर 1793 हेक्टेयर कारण 2737 परिवार विस्थापित एवं प्रभावित होंगे। देश के विभिन्न बांधों के अधययन से पता चलता है कि जितने रकबा में सिंचाई का दावा किया जाता है उसमें से मात्र 60 से 70 प्रतिशत रकबा है ही सिंचित हो पाया है। इस आधार पर र बसनिया बांध से निर्धारित 8780 हेक्टेयर रकबा का अधिकतम 70 प्रतिशत के हिसाब से आकलन करने के पर मात्र 6146 हेक्टेयर जमीन में सिंचाई होगा जबकि 6343 हेक्टेयर जमीन डूब में आ रहा है। इसका अर्थ है कि सिंचाई के रकबा से अधिक 197 हेक्टेयर भूमि डूब में आ रहा है। मालूम हो कि मिट्टी को बनने में लाखों वर्ष लगे हैं और धरती का स्वरूप आया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कि मंडला और डिंडोरी जिले के किसानों के खेतों में पानी पहुंचाना अति आवश्यक है। इसके लिए हमें बांध के अलावा अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष रजनिश वैशय ने मिडिया को बताया बताया था कि अब नर्मदा घाटी में बांध नहीं बना कर नर्मदा से पानी लिफ्ट कर खेतों में पानी पहुंचाया जाएगा। दूसरी ओर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 21 नवम्बर 2023 को नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को लिखे गए पत्र में बताया गया है कि 100 मेगावाट में से मात्र 35 करोड़ र युनिट वार्षिक विधुत उत्पादन होगा। इस 35 करोड़ युनिट को अधिकतम 5 रुपये प्रति युनिट में बिक्री किया जाता है तो 175 करोड़ रुपये की आमदनी होगी। उत्पादन स्थल से उपभोक्ताओं तक बिजली पहुंचाने के दौरान न्यूनतम 15 प्रतिशत बिजली की हानि होता है। अगर 15 प्रतिशत होनि को जोड़ा जाएं तो आमदनी 148.75 करोड़ रुपये वार्षिक रह जाएगा। इस परियोजना की लागत 2884 करोड रुपये है। अगर इस पूंजी को किसी भी बैंकों से न्यूनतम 8 प्रतिशत ब्याज की दर से ऋण लिया जाता है तो 230 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष ब्याज भुगतान करना होगा। इस परियोजना से एक मेगावाट बिजली उत्पादन का खर्च 28.84 करोड़ रुपये खर्च आ रहा है जबकि सोलर प्लांट से लगभग 4.5 करोड़ रुपये आएगा। बिजली उत्पादन से प्रतिवर्ष मिलने वाला आमदनी और ब्याज भुगतान का अंतर काफी बड़ा है। जबकि बांध बनने के कारण खेती, जंगल, जैवविविधता और मवेशी से होने वाले आमदनी की हानि का आंकलन शामिल नहीं है।

                       मध्यप्रदेश सरकार ने सन् 2020 में नर्मदा बेसिन प्रोजेक्ट कम्पनी बना कर घाटी की विभिन्न परियोजनाओं को पूरा करने के लिए पावर फाइनेंस कापरिशन से 20 हजार करोड़ रुपये ऋण लेने का अनुबंध किया था। बसनिया बांध में लगने वाला 2884 करोड़ रुपये मध्यप्रदेश की जनता को टेक्स के रूप में भुगतना होगा और फायदा ठेकेदार एवं व्यपारियों को होगा। आश्चर्य है कि बसनिया बाध निर्माण के कारण नर्मदा नदी, नाला के जलग्रहण क्षेत्र में उसके वहन क्षमता और निरंतरता का संचयी प्रभाव (कम्यूलेटिव ईम्पेकट) का अध्ययन नहीं किया गया है। दूसरी ओर वन भूमि का परिवर्तन, जैव विविधता हानि के कारण जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले असर का मत पर्यावरणीय दृष्टि से लाभ हानि का विश्लेषण भी नहीं हुआ है और परियोजना के कारण जलीय और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाला असर का भी अध्ययन नहीं हुआ है। जिसके कारण अभी बसनिया बांध को पर्यावरणीय और वनभूमि परिवर्तन की मंजूरी नहीं मिला है। परन्तु नौकरशाहों ने देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखकर उनसे बांधों का शिलान्यास करवा लिया है।

उपरोक्त तथ्यों से साफ हो गया है कि यह परियोजना प्रदेश की जनता और विस्थापित परिवारों को कंगाल बनायगा।

नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को बसनिया बांध परियोजना के लाभ-हानि पर सार्वजनिक चर्चा आयोजित करना चाहिए।

: संपादक : खबर 750

 

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